हर instrument में कम से कम एक इनपुट होता है और एक आउटपुट होता है. अगर किसी एग्जांपल की बात करें तो जैसे एक थर्मोकपल मिलिवोल्ट जनरेट करता है और उससे डिस्प्ले फॉर्म में दिखाने के लिए एक transmitter होता है, जो थर्मोकपल के milivolts को रीड करके आपको डिस्प्ले होने लायक वैल्यू में यानि की डिग्री सेंटीग्रेड में आपको वैल्यू दिखाता है. Factory Calibrated इंस्ट्रूमेंट 25 डिग्री ऊपर 25 डिग्री और 50 डिग्री पर 50 डिग्री दिखाएगा. पर समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इंस्ट्रूमेंट में लगे कॉम्पोनेंट की एजिंग (aging) होने लगती है तो हो सकता है कि आपको 25 डिग्री पर 26 डिग्री और 50 डिग्री पर 51 डिग्री दिखाना शुरू कर दे. और या ऐसा भी हो सकता है कि आपको जीरो डिग्री पर तो जीरो डिग्री दिखा रहा है पर 50 डिग्री पर यह वैल्यू 54 डिग्री दिखाती है. इस समय ऐसा समझा जाता है कि इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन disturb हो गया है और इंस्ट्रूमेंट को वापस सही वैल्यू दिखाने के लिए उसकी ट्यूनिंग करनी पड़ती है. इसी ट्यूनिंग को इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन करना कहते हैं.

कैलिब्रेशन का standard?
इंडस्ट्री में बहुत सारे इंस्ट्रूमेंट लगे होते हैं जिन्हें समय-समय पर कैलिब्रेशन करना आवश्यक होता है अगर कैलिब्रेशन नहीं किया जाएगा तो instrument गलत रेडिंग दिखाएंगे और कुछ समय के बाद यह इंस्ट्रूमेंट किसी काम के नहीं रहेंगे. इस तरह ये instrument किसी standard के अगेंस्ट calibrate होते है. यानी कि आपके पास कोई ऐसा स्टैंडर्ड होना चाहिए जिससे आपको पता चले कि हां यह तो पूरी तरह सही है. अगर आपका स्टैंडर्ड ही गलत है यानी कि आपका स्टैंडर्ड ही 25 डिग्री पर 27 डिग्री पढता है तो अगर आप इस गलत स्टैंडर्ड से अपने इंस्ट्रूमेंट को calibrate करेंगे तो वह भी आपके गलत स्टैंडर्ड की तरह गलत ही वैल्यू पर calibrate होगा और भविष्य में भी गलत वैल्यू ही दिखायेगा.
कैलिब्रेशन की परिभाषा
Instrument और equipment को इस तरह एडजस्ट करने की प्रक्रिया है कि वह measure किये जाने वाले पैरामीटर को सही आकलन कर सके.
कैलिब्रेशन की आवश्यकता
समय के साथ साथ हर एक equipment चाहे वह एक कोई इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट ही क्यों ना हो डिग्रेड होना शुरू होता है. जैसे-जैसे कॉम्पोनेंट्स की age ज्यादा होती जाती है उनकी स्टेबिलिटी कम होती रहती है और वो अपनी ओरिजिनल स्पेसिफिकेशन से वह धीरे धीरे drift करने लगता है. जिसकी वजह से equipment का आउटपुट, अपनी ओरिजिनल वैल्यू से अलग वैल्यू दिखाना शुरू कर देते हैं. जिससे पूरा का पूरा process डिस्टर्ब होने लगता है.
Industries में इस तरह के एप्लीकेशन भी रहते हैं जहाँ जरा सी भी error tolerable नहीं है. वहां पर छोटी से छोटी error से पूरी की पूरी प्रोडक्ट लाइन डिस्टर्ब होने के चांस रहते हैं इसलिए इंस्ट्रूमेंट का एक्यूरेट और precise होना बहुत ही आवश्यक है. इसलिए instruments और equipments का कैलिब्रेशन बहुत ही आवश्यक हो जाता है.
कब करना चाहिए instrument कैलिब्रेशन?
अलग-अलग तरह के इंस्ट्रुमेंट को calibrate करने की आवश्यकता अलग अलग हो सकती है. फिर भी एक थंब रूल के तहत हर इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन साल भर में कम से कम एक बार होना आवश्यक है. इसके अलावा opportunity based कैलिब्रेशन भी किया जा सकता है यानी कि जब भी कोई प्रोडक्ट लाइन या इंडस्ट्री शटडाउन में जाती है तब अवसर मिलने पर इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन कर लेना एक अच्छी प्रेक्टिस माना जाता है. इसके अलावा जब भी किसी इंस्ट्रूमेंट की वैल्यू पर आशंका होती है या डाउट लगता है तब भी इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन किया जाता है. अधिकतर इंस्ट्रूमेंट का कैलिब्रेशन period 1 साल होता है और 1 साल तक अच्छे इंस्ट्रूमेंट की वैल्यू ज्यादा drift नहीं होती.
कैलिब्रेशन से जुड़े कुछ इंपोर्टेंट terms
Zero setting:
इंस्ट्रूमेंट पर कोई भी इनपुट ना देने पर जो मिनिमम वैल्यू इंस्ट्रूमेंट को रीड करनी चाहिए वह वाली instrument की zero वैल्यू कहलाती है. अगर आपका इंस्ट्रूमेंट पूरी रेंज में एक फिक्स वैल्यू को add करके या minus करके वैल्यू दे रहा है तो पॉसिबिलिटी है कि आपका इंस्ट्रूमेंट की zero वैल्यू drift हो गयी है. ऐसी स्थिति में आपको zero वैल्यू एडजस्ट करने की आवश्यकता पड़ेगी.
Span setting :
अगर आपका इंस्ट्रूमेंट जीरो पर तो सही वैल्यू दे रहा है पर जैसे-जैसे इनपुट वैल्यू बढ़ती है एरर बढ़ती ही चली जाती है यानी कि आउटपुट और इनपुट में डिफरेंस बढ़ता चला जाता है तो ऐसी स्थिति में पॉसिबिलिटी है कि आपका इंस्ट्रूमेंट की span सेटिंग ड्रिफ्ट हो गयी है. ऐसी स्थिति में आपको इंस्ट्रूमेंट की span वैल्यू को एडजस्ट करना होगा.

Zero एंड span एरर :
ऐसा संभव है कि आपके इंस्ट्रूमेंट में जीरो और स्पेन दोनों तरह की एक साथ हो तब आपको कैलिब्रेशन के कुछ fixed स्टेप फॉलो करने होंगे जिससे आपका इंस्ट्रूमेंट calibrate हो जाएगा.
Calibration ( Zero and span adjustment ):
कैलिब्रेशन करने का एक सिंपल सीधा तरीका है, zero और span adjustment करना. उसके लिए सबसे पहले instrument में standard instrument से जीरो वैल्यू सप्लाई करना है और देखना होता है कि आपका instrument जीरो दिखा रहा है की नहीं. अगर ऐसा नहीं है तो zero potentiometer से जीरो एडजस्ट कर देना है (4-20 mA सिस्टम में आपको 4 mA एडजस्ट करना है). इसके बाद instrument में standard instrument की हेल्प से span वैल्यू फीड करनी है और वहां पर अगर instrument कुछ अलग वैल्यू दिखाता है तो span potentiometer से एडजस्ट कर देना है. (4-20 mA सिस्टम में आपको 20 mA एडजस्ट करना है). ऐसा हो सकता है कि span एडजस्ट करने के बाद अगर आप zero इनपुट दे तो आपका जीरो फिर से डिस्टर्ब हो गया हो. ऐसी स्थिति में फिर से जीरो एडजस्ट करना है और यह process तब तक repeat करना है जब तक आपको zero पर zero और span पर span न मिल जाए. ऐसा होने पर आपका instrument calibrate हो जायेगा.

Calibrators:
अलग अलग instrument के लिए अलग अलग instrument इस्तेमाल होते हैं. जैसे कि temperature gauge, switches के लिए temperature बाथ का इस्तेमाल होता है. Pressure gauges, स्विच और ट्रांसमीटर के लिए प्रेशर पम्प का इस्तेमाल होता है. आजकल स्मार्ट कैलीब्रेटर भी मार्किट में उपलब्ध हैं जिसमे HART (Highway Addressable Remote Transducer) protocol का इस्तेमाल होता है.
दोस्तों उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा अगर आपके कोई डाउट या सुझाव है तो कृपया कमेंट सेक्शन में हमें बताइए. मिलेंगे आपसे अगले आर्टिकल में, तब तक के लिए गुड बाय और टाटा.
superb post sir ji
Transmitter ko measure Karne me liye Hart ke alawa kin dusre instrument Ka upyog Kar sakte hai
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